• पं0 दीनानाथ दिनेश की लिखी हुई पुस्तकें और उनका कार्य देखकर मुझे विशेष आनन्द और सन्तोष हुआ।
    स्वनामधन्य राष्ट्रपति श्री डा0 राजेन्द्र प्रसाद जी
  • गीता का इस प्रकार का सरल और शुद्ध अनुवाद मेरे देखने में नहीं आया। जनता के लिये यह अनुवाद बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।
    महामहोपाध्याय श्री पं0 हरनारायण जी शास्त्री विद्यासागर
  • यह अनुवाद सब दोषों से रहित है। मूल के भावों की रक्षा की गई है।
    महामान्य श्री 108 स्वामी भोले बाबा
  • आपका कार्य बहुत उत्तम है। इसकी बहुत आवश्यकता है कि धर्म के ज्ञान का प्रचार जहाँ तक हो सके किया जाय। संसार में धर्म से परे कोई वस्तु नहीं है।
    प्रातः स्मरणीय महामना श्री पं0 मदनमोहन जी मालवीय
  • गायन-शैली इनती मधुर और सरस है कि मेरे निश्चय में बालक तथा स्त्रियां भी इसको सरलता से कण्ठस्थ करके गाते हुए, समयानन्तर यथार्थ ज्ञान और धर्म लाभ कर सकते हैं। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि घर-घर में इस ग्रन्थ का प्रचार हो।
    Author image
    व्याख्यानवाचस्पति श्री पंडित दीनदयालु शर्मा
  • Writing in a simple but chaste language the author has succeeded in combining the charm of the original with the elegance of the vernacular. Hindu College, Delhi 24 January, 1937
    -N.V. THADANI

A Modern Exponent of Bhagwad Gita

Shri Hari Gita is among those who have popularized the Bhagavad GitaPandit Dina Nath Bhargava ‘Dinesh’ has an enviable place. He has given the subject a new angle. He has a style of his own gifted with a deep and musical voice, he can hold the attention of the most unwilling of listeners.

Shri Hari Gita

प्रशंसा प्रसाद

  • "पं0 दीनानाथ दिनेश की लिखी हुई पुस्तकें और उनका कार्य देखकर मुझे विशेष आनन्द और सन्तोष हुआ। "
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    - स्वनामधन्य राष्ट्रपति श्री डा0 राजेन्द्र प्रसाद जी
  • "गीता का इस प्रकार का सरल और शुद्ध अनुवाद मेरे देखने में नहीं आया। जनता के लिये यह अनुवाद बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।"
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    - महामहोपाध्याय श्री पं0 हरनारायण जी शास्त्री विद्यासागर
  • "यह अनुवाद सब दोषों से रहित है। मूल के भावों की रक्षा की गई है।"
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    - महामान्य श्री 108 स्वामी भोले बाबा
  • "आपका कार्य बहुत उत्तम है। इसकी बहुत आवश्यकता है कि धर्म के ज्ञान का प्रचार जहाँ तक हो सके किया जाय। संसार में धर्म से परे कोई वस्तु नहीं है।"
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    - प्रातः स्मरणीय महामना श्री पं0 मदनमोहन जी मालवीय
  • "गायन-शैली इनती मधुर और सरस है कि मेरे निश्चय में बालक तथा स्त्रियां भी इसको सरलता से कण्ठस्थ करके गाते हुए, समयानन्तर यथार्थ ज्ञान और धर्म लाभ कर सकते हैं। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि घर-घर में इस ग्रन्थ का प्रचार हो।"
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    - व्याख्यानवाचस्पति श्री पंडित दीनदयालु शर्मा
  • Writing in a simple but chaste language the author has succeeded in combining the charm of the original with the elegance of the vernacular. Hindu College, Delhi 24 January, 1937
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    -N.V. THADANI
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